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जाते

जाते जाते वो मुझे जावेद अख़्तर

जाते जाते वो मुझे जावेद अख़्तर

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जाते

जाते जाते वो मुझे जावेद अख़्तर जाते हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते राहत इंदौरी की संपूर्ण ग़ज़ल रेखता पर जाते किसी बहुत गहरे दु:ख अथवा बहुत बड़ा पाप हो जाने के अवसर पर बोलते हैं कि धरती-आकाश फट क्यों नहीं जाते अर्थ यह होता है कि प्रलय

जाते जब मुंह में छाले हो जाते हैं तो ये काफी तकलीफदायक होने लगते हैं। कुछ भी खाना या पीना मुश्किल हो जाता है। मुंह के छाले ठीक करने के

जाते हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते राहत इंदौरी की संपूर्ण ग़ज़ल रेखता पर  जाते हैं । स्मृति कोष वहां स्थित हैं जहाँ आंतरिक मन स्थित हैं । इस प्रकार , यह ऐसा हैं

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